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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2797
आईएसबीएन :0

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समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)

अध्याय - 6

कार्ल मार्क्स

(Karl Marx )

प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?

अथवा
कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवादी दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
अथवा
ऐतिहासिक भौतिकवाद के दर्शन की पृष्ठभूमि को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लेनिन के अनुसार, "मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद वैज्ञानिक चिन्तन की महानतम उपलब्धि है। आप इस तर्क से कहां तक सहमत हैं? कारण सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
मार्क्स द्वारा प्रस्तुत इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या का समालोचनात्मक वर्णन कीजिये।
अथवा
कार्ल मार्क्स के "ऐतिहासिक भौतिकवाद" से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।

उत्तर -

ऐतिहासिक भौतिकवाद या इतिहास
की भौतिकवादी व्यवस्था
(Historical Materalism or Materialistic
Interpretation of History)

मार्क्स द्वारा दिए उनके समाज तथा इतिहास के सिद्धान्त को 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' के नाम से जाना जाता है। यह उस नियम की व्याख्या पर आधारित है जो कि मानव इतिहास की गतिविधि निर्धारित करती है। मार्क्स ने इसके द्वारा हीगल द्वारा प्रस्तुत इतिहास की आदर्शात्मक व्याख्या के स्थान पर अपनी भौतिकवादी व्याख्या प्रस्तुत की है।

मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद इस प्रश्न का उत्तर देता है कि वह कौन सा भौतिक प्रभाव है जो इतिहास की घटनाओं का संचालन व नियमन करता है। मार्क्स के अनुसार, समाज की संरचना, विचार एवं राजनीतिक संस्थाओं आदि का निर्धारण समाज के भौतिक जीवन की अवस्थाओं द्वारा होता है। मार्क्स इस विचार से सहमत नहीं है कि भौगोलिक वास्तविकता तो यह है कि समाज के भौतिक जीवन की अवस्थाओं की धारणा के अन्तर्गत सर्वप्रथम प्रकृति या भौगोलिक पर्यावरण आता है। भौगोलिक पर्यावरण, सामाजिक जीवन और उसके विकास को प्रभावित करता है। इसके बावजूद भी भौतिकवाद इस बात को स्वीकार नहीं करता है कि 'भौगोलिक पर्यावरण का यह प्रभाव सब कुछ है या मुख्य रूप से इसके द्वारा ही समाज की संरचना, सामाजिक व्यवस्था की प्रकृति एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में परिवर्तन आदि निर्धारित होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भौगोलिक पर्यावरण के परिवर्तन व विकास की अपेक्षा कहीं अधिक तेजी से सामाजिक परिवर्तन व विकास घटित होते हैं अतः भोगोलिक पर्यावरण का सामाजिक जीवन पर निर्णायक प्रभाव नहीं होता है।

उदाहरणार्थ यूरोप का भौगोलिक पर्यावरण सदियों से परिवर्तित नहीं हुआ, जबकि गत तीन हजार वर्षों में इसी यूरोप में एक के बाद दूसरी सामाजिक आर्थिक व्यवस्थाओं के उद्भव, विकास और पतन हो चुका है। जैसे आदिम साम्यवादी व्यवस्था, दास व्यवस्था, सामन्तवादी व्यवस्था, पूँजीवादी व्यवस्था एवं रूस में समाजवादी व्यवस्था आदि। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि भौगोलिक पर्यावरण सामाजिक विकास का प्रमुख निर्णय का नहीं है।

यह भी सत्य है कि जनसंख्या की वृद्धि समाज के भौतिक जीवन की आवश्यकताओं की धारणा के अन्तर्गत आ जाती है, क्योंकि समाज के भौतिक जीवन की अवस्था का एक आवश्यक तत्व मनुष्य या जनसंख्या है। समाज का भौतिक जीवन एक न्यूनतम जनसंख्या के बिना नहीं बन सकता है। तो क्या जनसंख्या की वृद्धि ही मनुष्य की सामाजिक व्यवस्था के निर्धारण की प्रमुख शक्ति है? ऐतिहासिक भौतिकवाद का उत्तर है- 'नहीं'। जनसंख्या की वृद्धि का निर्णायक प्रभाव सामाजिक विकास नहीं हो सकता, क्योंकि कारक यह नहीं बता सकता कि अमुक सामाजिक व्यवस्था ने एक सामाजिक व्यवस्था का स्थान क्यों ले लिया, क्यों दास व्यवस्था का उदय आदिम साम्यवादी व्यवस्था के स्थान पर हुआ क्यों सामन्तवादी व्यवस्था ने दास व्यवस्था, और पूँजीवादी व्यवस्था ने सामन्तवादी व्यवस्था ने ही लिया, अन्य किसी व्यवस्था ने क्यों नहीं लिया। यदि सामाजिक विकास का निर्णायक कारण जनसंख्या की वृद्धि होता है तो वहाँ की सामाजिक व्यवस्था उच्च कोटि की होनी चाहिए, जिस समाज की जनसंख्या अधिक है। लेकिन ऐसा शायद ही देखने को मिलता है। उदाहरणार्थ, अमेरिका का सामाजिक विकास अधिक है जबकि अमेरिका तथा चीन का क्षेत्रफल लगभग समान है और चीन की जनसंख्या का घनत्व अमेरिका से चार गुना अधिक है। इसी प्रकार अमेरिका से दस गुना भारत की जनसंख्या का घनत्व है। लेकिन यहाँ की सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह न तो समाजवादी है और न पूँजीवादी है।

सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं के निर्णायक कारण यदि भौगोलिक परिस्थितियाँ या जनसंख्या में वृद्धि नहीं है तो वह शक्ति कौन है जो इतिहास की घटनाओं-सांस्कृतिक व्यवस्था, धार्मिक, मनुष्य के नैतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विचार एवं संस्थाओं का नियमन तथा निर्धारण करती है? ऐतिहासिक भौतिकवाद के अनुसार, इस शक्ति में मानव अस्तित्व के लिए जीवन के आवश्यक साधनों को प्राप्त करने की उत्पादन प्रणाली निहित है।

संक्षेप में इतिहास की घटनाओं को मुख्यता निर्धारण करने में उत्पादन प्रणाली का ही प्रभाव है। इसीलिए इसे मार्क्स के इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या अथवा उत्पादन प्रणाली द्वारा इतिहास की व्याख्या भी कहा जाता है। आर्थिक निर्णायकवाद मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद का प्रमुख तत्व है। इसका अर्थ यह नहीं है कि मानव जो कुछ भी करता है, आर्थिक या भौतिक स्वार्थों की प्रेरणा से उसका निर्णय हो। मार्क्स का यह विश्वास नहीं है कि जिनसे प्रेरित होकर मनुष्य कार्य करता है, सामाजिक व्यवस्था की व्याख्या उन हेतुओं के विश्लेषण द्वारा कर सकते हैं। उनके कथानुसार मनुष्य को जीवित रहना आवश्यक है, इससे इतिहास का निर्माण होता है। मनुष्य को भोजन, मकान, कपड़ा आदि वस्तुयें जीवित रहने के लिए आवश्यक हैं। इसके लिए आवश्यक है कि वह उत्पादन करे और उत्पादन के लिए उपकरणों या साधनों की आवश्यकता पड़ती है।

जिनके द्वारा भौतिक मूल्यों का उत्पादन होता है, उत्पादन के ये उपकरण हैं, मनुष्य भौतिक मूल्यों का उत्पादन उपकरणों का प्रयोग करके करते हैं, एक समाज की उत्पादन शक्ति को उत्पादन - अनुभव व श्रम कौशल ये तत्व एक साथ मिलकर बनाते हैं। परन्तु उत्पादन प्रणाली का उत्पादक- शक्ति का केवल एक पक्ष है। मनुष्यों का उत्पादन सम्बन्ध उत्पादन प्रणाली का दूसरा पक्ष है। मनुष्य भौतिक मूल्यों के उत्पादन में प्रकृति को काम में लाता है तथा प्रकृति के विरुद्ध संघर्ष करता है।

लेकिन मनुष्य ये सब काम समूह में एक साथ मिलकर करता है। अतः प्रत्येक परिस्थिति में, प्रत्येक समय में उत्पादन, सामाजिक उत्पादन होता है। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों से किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध सामाजिक उत्पादन के सिलसिले में स्थापित कर ही लेता हो। मार्क्स के शब्दों में, 'उत्पादन में मनुष्य केवल प्रकृति के प्रति ही नहीं, बल्कि एक-दूसरे के प्रति भी क्रियाशील होता है। अपने कार्यों के आपस में देन लेने से किसी न किसी तरह से सहयोग करते हुए वे उत्पादन करते हैं। उत्पादन करने के लिए एक- दूसरे से निश्चित सम्बन्ध तथा परस्पर मिलना पड़ता है और उत्पादन कार्य परस्पर मिलने तथा सम्बन्धों के अन्तर्गत सम्पादित होता है। यह अधिक समय तक स्थिति पर स्थिर नहीं रहती, यह उत्पादन प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें विकास तथा परिवर्तन सदैव होता रहता है। सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक मतों और राजनीतिक संस्थाओं व विचारों में परिवर्तन उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन अवश्यम्भावी हो जाता है अर्थात् समग्र सामाजिक तथा राजनीति व्यवस्था का निर्माण उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन होने से अनिवार्य हो जाता है। मनुष्य उत्पादन प्रणाली को अलग-अलग विकास के विभिन्न स्तर को अपनाता है। एक प्रकार की उत्पादन प्रणाली आदिम साम्यवादी युग में थी, दूसरे प्रकार की दासत्व युग में, साम्यवादी युग में तीसरे प्रकार की तथा चौथे प्रकार की पूँजीवादी युग में और मनुष्य की सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक संस्थाएँ, आध्यात्मिक जीवन विचार आदि इन परिवर्तनों के साथ-साथ परिवर्तित होते रहे।

इसका अर्थ यह हुआ कि इतिहास वास्तव में समाज के विकास, उत्पादन प्रणाली के विकास का इतिहास यानि विकास का इतिहास उत्पादन-शक्ति और मनुष्य के उत्पादन के सम्बन्ध में है जो कि भौतिक मूल्यों का उत्पादन करते हैं। दूसरे शब्दों में उत्पादन की प्रक्रिया में सामाजिक विकास का इतिहास उस मेहनतकश जनता की प्रमुख शक्ति है जो आवश्यक भौतिक मूल्यों का उत्पादन समाज के अस्तित्व के लिए करती है।

इस कारण यदि इतिहास को विज्ञान बनाना है तो जो लोग भौतिक मूल्यों का उत्पादन करते हैं उनका इतिहास होगा, मजदूरों का इतिहास होगा, जनता का इतिहास होगा न कि राजाओं, सेनापतियों, विजेताओं या शासकों के कारनामों का इतिहास होगा।

यही व्याख्या मार्क्सवादी इतिहास की व्याख्या है जो संक्षिप्त में निम्न प्रकार है-  

(1) मनुष्य जीवित रहे यह मानव अस्तित्व के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता है, तभी इतिहास का निर्माण हो सकता है। इसके लिए सर्वप्रथम आवश्यकता भोजन, कपड़ा, निवास आदि की है।

(2) ऐतिहासिक विकास भौतिक वस्तुओं या मूल्यों उत्पादन और पुनः उत्पादन पर निर्भर है।

(3) इससे स्पष्ट है कि भोजन, वस्त्र और निवास आदि ऐतिहासिक कार्य इन साधनों का उत्पादन है। जिससे आवश्यकता की पूर्ति हो सके अर्थात् सर्वप्रथम ऐतिहासिक कार्य भौतिक जीवन का उत्पादन है। हजारों वर्ष पहले की भाँति आज भी मानव जीवन को बनाये रखना आवश्यक है वास्तव में यही एक ऐतिहासिक कार्य है।

(4) उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन के ही फलस्वरूप इतिहास के सभी प्रमुख परिवर्तन हुए। उत्पादन प्रणाली के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक वर्गों की प्रकृति तथा पद, नैतिक आदर्श, कला, साहित्य तथा राजनीतिक संस्थाएं आदि विभिन्न सामाजिक वर्गों में परिवर्तन करती रहती हैं। 

(5) एक समय विशेष में हम जीवित रहने के लिए जिन भौतिक साधनों को प्राप्त कर लेते है वही आधार होता है जिस पर कानून, कला, धर्म, सरकार आदि आधारित होते हैं।

(6) अतः आत्मा या आदर्श पर इतिहास का विकास विचार आधारित नहीं है। समाज का आर्थिक जीवन- उत्पादक शक्ति व उत्पादन सम्बन्ध उसका एक वास्तविक आधार है।

(7) इस प्रकार सबसे प्रथम, सबसे अधिक आवश्यक, सबसे आधारभूत भौतिक मूल्यों की क्रिया और सबसे अधिक सामान्य ऐतिहासिक घटना है। इस कारण इतिहास के निर्माण में मेहनतकश जनता का हाथ होता है न कि गिने-चुने दो चार व्यक्तियों का। दूसरे शब्दों में इतिहास का निर्माण असंख्य साधारण व्यक्तियों के द्वारा होता है न कि दो चार असाधारण व्यक्तियों के द्वारा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
  5. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
  6. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
  7. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
  8. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
  9. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
  10. प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  11. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  12. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
  14. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
  15. प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
  18. प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
  19. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
  20. प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
  24. प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
  25. प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
  26. प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
  27. प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  28. प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
  30. प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
  31. प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
  32. प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
  33. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
  35. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
  36. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
  41. प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
  43. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
  44. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
  45. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  49. प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
  54. प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
  55. प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
  56. प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  58. प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  59. प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
  60. प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
  63. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
  69. प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  71. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  72. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  79. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
  80. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
  81. प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
  82. प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
  83. प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  84. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
  86. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  88. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  89. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  90. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  91. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  92. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
  95. प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
  96. प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
  97. प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  100. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
  103. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  104. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  105. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  106. प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
  107. प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  112. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  113. प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
  114. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
  115. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  117. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  123. प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
  126. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  127. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  128. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  130. प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
  131. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
  133. प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
  134. प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
  136. प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
  137. प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
  138. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  139. प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
  140. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  142. प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
  143. प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
  144. प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  145. प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
  146. प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  147. प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
  148. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  149. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
  150. प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
  151. प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
  152. प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
  153. प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
  154. प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
  155. प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
  156. प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
  157. प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
  158. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  159. प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
  160. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  161. प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
  162. प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  163. प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  164. प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
  165. प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
  166. प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।

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